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लघु उद्योग खोलने के फायदे, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, कुटीर एवं ग्रामोद्योग (एमएसएमई) Micro, Small and medium enterprises (MSME)

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लघु उद्योग खोलने के फायदे

कुटीर उद्योग सामूहिक रूप से उन उद्योगों को कहते हैं जिनमें उत्पाद एवं सेवाओं का सृजन अपने घर में ही किया जाता है न कि किसी कारखाने में। कुटीर उद्योगों में कुशल कारीगरों द्वारा कम पूंजी एवं अधिक कुशलता से अपने हाथों के माध्यम से अपने घरों में वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। भारत जैसे विकासशील देश के आर्थिक विकास में लघु उद्योगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। देश का औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, रोज़गार और उद्यम संबंधी आधार सृजन में लिए उनके योगदान के आधार पर भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के महत्त्वपूर्ण खण्‍ड हैं। मोटे तौर पर ये उद्योग अर्थव्यवस्था  के पारम्परिक अवस्था से प्रौद्योगिकीय अवस्था में पारगमन को प्रदर्शित करते हैं। उद्यम आधार के विस्तार के लिए लघु उद्योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लघु उद्योगों का विकास उद्योग के विस्‍तृत आधार का स्वामित्व प्राप्त करने, उद्यम का अपविस्तार और औद्योगिक क्षेत्र में पहल करने के लिए सरल और प्रभावी साधन प्रदान करता है।

कुटीर उद्‌योग- धंधे हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्‌डी हैं । इनमें एक ओर तो ऐसे साधनों का उपयोग होता है जो घरेलू तथा स्थानीय स्तर के हैं दूसरी ओर इनके माध्यम से प्रदूषण भी कम फैलता है । अत: लघु एवं बृहत् उद्‌योगों की तुलना में इन्हें महत्व देना हर प्रकार से बुद्‌धिमत्तापूर्ण कहा जा सकता है ।

कुटीर और ग्रामोद्योग क्षेत्र औद्योगिक विकास का मूलाधार है। यही वह क्षेत्र है जो दूर-दराज़ के ग्रामीण क्षेत्रों के औद्योगीकरण में महत्वपूर्ण योगदान देता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों के विविधिकरण, भूमि पर दबाव को कम करने और बेरोज़गारी तथा अर्ध-बेरोज़गारी की चुनौती का प्रभावी रूप से मुकाबला करने के लिए इस क्षेत्र का विकास महत्वपूर्ण है।

लघु उद्योग खोलने के फायदे

आप कम पूँजी निवेश करके भी लघु उद्योग की स्थापना कर सकते हैं |

लघु उद्योग खोलने के लिए सरकार आपको प्रेरित करती है | और आपको सरकार का समर्थन हासिल होता है | आपके भविष्य के संवर्धन प्रक्रिया हेतु भी सरकार आपकी मदद करती है | जिससे अधिक से अधिक लोग प्रेरित हों सकें |

वित्त सम्बन्धी समस्याओ के लिए भी फंड और सब्सिडी विद्यमान है |

समग्र आर्थिक विकास हेतु घरेलू बाज़ार की मांग में वृद्धि |

दुनिया के बाजारों में भारतीय उत्पाद की मांग बढ़ सकती है | इसलिए भारतीय उत्पादों का निर्यात संभावित है |

लघु उद्योग स्थापित करने के लिए मशीने, कच्चा माल, मजदूर, सस्ते दरो पर उपलब्ध हों जाते हैं | क्योकि अधिकतर लघु उद्योग स्थानीय लोगो को लक्ष्य रखते हुए ही स्थापित किये जाते हैं |

लघु उद्योगों के लिए परफारमेंस एण्ड क्रेडिट रेटिंग स्कीम

  • सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को अपने मौजूदा कार्यों की क्षमता व कमजोरियों का पता लगाने तथा उनकी संगठनात्मक क्षमता को बढ़ाने हेतु सुधारात्मक उपाय करने के लिए, राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम इकरा, ओनिकरा, क्रिसिल, फिच, केयर, ब्रिकवर्क रेटिंग्स और स्मैरा जैसी पैनल में खी गई एजेंसियों के माध्यम से परफारमेंस एण्ड क्रेडिट रेटिंग स्कीम चला रहा है। सूक्ष्म एवं लघु उद्यम को इस बात की छूट है कि वह राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम के पैनल वाली रेटिंग एजेंसी में से किसी को भी अपनी रेटिंग के लिए चुन सकता है। रेटिंग एजेसिंया अपनी नीतियों के अनुसार क्रेडिट रेटिंग फीस चार्ज करेगी। इससे सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को निम्न लाभ मिलते हैं
  • सूक्ष्म एवं लघु उद्यम इकाइयों की सामर्थ्यों एवं ऋण क्षमताओं पर एक स्वतंत्र, विश्वसनीय तीसरा मत।
  • अच्छी रेटिंग सूक्ष्म एवं लघु उद्यम इकाइयों की बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, लघु उद्योगों के ग्राहकों तथा खरीददारों में स्वीकार्यता को बढ़ाती है।
  • सूक्ष्म एवं लघु उद्यम इकाइयों के प्रस्तावों पर बैंकों से शीघ्र ऋण निर्णय कराने में सहायता करना।
  • 50 लाख रूपए तक का बिजनेस करने वाले लघु उद्यम को अनुदान के रूप में क्रेडिट रेटिंग फीस का 75% परन्तु अधिकतम 25,000/ रूपए की राशि तक की प्रतिपूर्ति की जाएगी।
  • 50 लाख रूपए से 200 लाख रूपए तक का कारोबार करने वाले लघु उद्यम को अनुदान के रूप में क्रेडिट रेटिंग फीस का 75% परन्तु अधिकतम 30,000/ रूपए की राशि तक की प्रतिपूर्ति की जाएगी।
  • 200 लाख रूपए से अधिक का बिजनेस करने वाले लघु उद्यम को अनुदान के रूप में क्रेडिट रेटिंग फीस का 75% परन्तु अधिकतम 40,000/ रूपए की राशि तक की प्रतिपूर्ति की जाएगी।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई)

  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (Micro, Small and medium enterprises) वे उद्योग हैं जिनमें काम करने वालों की संख्या एक सीमा से कम होती है तथा उनका वार्षिक उत्पादन (turnover) भी एक सीमा के अन्दर रहता है। किसी भी देश के विकास में इनका महत्वपूर्ण स्थान है।
  • एमएसएमई की क्षमताओं को बढ़ाने के क्रम में, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने वित्त,बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी, विपणन और कौशल विकास के क्षेत्रों में कई कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू किया है ताकि इस क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं का समाधान किया जा सके।
  • एमएसएमई मंत्रालय ने सूक्ष्म और लघु उद्यमों के समग्र विकास के लिए एक सामूहिक दृष्टिकोण अपनाया है। इसमें डायग्नोस्टिक अध्ययन, क्षमता सृजन, विपणन विकास, निर्यात संवर्धन, कौशल विकास, प्रौद्योगिकी उन्नयन, कार्यशालाओं, सेमिनारों का आयोजन, प्रशिक्षण, यात्रा अध्ययन आदि जैसे छोटे तरीके और सामान्य सुविधा केन्द्रों की स्थापना, बुनियादी सुविधाओं का उन्नयन (मौजूदा औद्योगिक क्षेत्रों में उन्नत बुनियादी सुविधाओं का विकास / सामूहिक ढांचागत सुविधाओं का उन्नयन) जैसे बड़े कदम शामिल है।
  • एमएसएमई मंत्रालय भारत सरकार ने देश में सूक्ष्‍म एवं लघु उद्यमों तथा उनके समूहों की उत्‍पादकता और प्रतिस्‍पर्धात्‍मकता में बढ़ोत्‍तरी करने तथा उनकी क्षमता निर्मित करने के लिए मुख्‍य कार्यनीति के रूप में क्‍लस्‍टर एप्रोच को अपनाया है । यूनिटों का क्‍लस्‍टर विभिन्‍न सेवाओं को प्रदाताओं को अनेक सुविधाएं उपलब्‍ध कराता है । जिनमें बैंक और क्रेडिट एजेंसियां शामिल हैं,जिससे वे मितव्‍ययिता से अपनी सेवाएं प्रदान कर सकें और इस प्रकार इन उद्यमियों की लागत घटा सकें तथा सेवाओं की उपलब्‍धता में सुधार कर सकें ।

 

योजना का उद्देश्‍य

 

  • एमएसई से संबंधित सामान्‍य विषयों जैसे कि प्रौद्योगिकी,कौशलों और गुणवता में सुधार, बाजार तक पहुंच, पूंजी तक पहुंच आदि का समाधान करके उनकी उपयोगिता और वृद्धि में सहयोग देना ।

 

  • स्‍वयं सहायता समूहों, संगठनों के गठन, संघों के उन्‍नयन आदि के माध्‍यम से सामान्‍य सहयोगी कार्यों के लिए एमएसई की क्षमता निर्मित करना ।

 

  • नए/मौजूदा औद्योगिक क्षेत्रों/एमएसई के क्‍लस्‍टर में आधारभूत संरचना सुविधाएं सृजित करना/उन्‍नत करना ।

 

  • सामान्‍य सुविधा केंद्रों की स्‍थापना करना (परीक्षण, प्रशिक्षण केंद्र, कच्‍चे माल के डिपो,एफल्‍यूएंट ट्रीटमेंट,उत्‍पादन प्रक्रियाओं में सहायक बनने आदि हेतु )।

 

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