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कम पूंजी लगाकर लाखो कैसे कमाएं, कम लागत, ज्यादा कमाई, कम पैसे में शुरू करें ये बिजनेस, होगा मोटा मुनाफा

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कम पूंजी लगाकर लाखो कैसे कमाएं, कम लागत, ज्यादा कमाई

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लघु उद्योगों का भारतीय अर्थव्यवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। लघु उद्योग देश की आर्थिक एवं औद्योगिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्राचीन काल से ही भारत के लघु उद्योगों में उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन होता रहा है। लघु उद्योगों में उत्पादन का अधिकांश कार्य स्वचलित और अर्ध स्वचलित मशीनों पर होता है, अतः पूंजी निवेश के अनुपात में कम व्यक्तियों को रोजगार दे पाते हैं। परन्तु बड़े स्तर पर उत्पादन करने और उसमें श्रम विभाजन के सिद्धांतों एवं मशीनों और उन्नत उपकरणों का प्रयोग करने के कारण श्रेष्ठ गुणवत्तायुक्त वस्तुएँ तैयार करने में समर्थ हैं।

भारत जैसे विकासशील देश में जनसंख्या में तेजी से बढ़ती हुई श्रम शक्ति, अधिक संख्या में बेरोजगारी तथा अर्ध-बेरोजगारी आदि का संतुलन ठीक बनाये रखने के लिए लघु उद्योग ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा देश के आर्थिक विकास का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। कम पूंजी में वस्तु निर्माण करने का उद्योग प्रारम्भ करना लघु उद्योग कहलाता है।

लघु उद्योग क्या है?

लघु उद्योग एक औद्योगिक उपक्रम है जिसमें संयंत्रा एवं मशीनरी की निवेश सीमा 5 करोड़ रुपये से अधिक नहीं होती। तथापि यह निवेश सीमा सरकार द्वारा समय-समय पर परिवर्तित की जाती है। उद्योग में काम करने वाले व्यक्तियों की संख्या और प्रयुक्त इलैक्ट्रिक पावर आदि का कोई बन्धन नहीं है।

उद्योग का चुनाव और सुझावः

किसी भी नये उद्योग को प्रारम्भ करन से पहले निम्नलिखित सुझावों का गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए क्योंकि नये उद्योग को लगाने के लिए उसकी कई महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं का ज्ञान जरूरी है। उद्योग की सपफलता, प्रारम्भ किये जाने वाले उद्योग और उसके कई कार्यों आदि की समयानुसार पूर्ति करने पर निर्भर करता है।

                1              उद्योग में नयी उत्पादन की जाने वाली वस्तु क्या है, कितनी पूंजी आवश्यक है?

                2              अपने नये उद्योग की पूर्ण जानकारी, उद्योग में नई बनाई जाने वाली वस्तु के बारे में सामान्य और टैक्निकल ज्ञान।

3              कच्चे माल की उपलब्धि एवं क्वालिटी।

                4              निर्मित वस्तु व माल का मार्केट तथा बिक्री साधन।

                5              उत्पादन की क्वालिटी मार्केट में उत्तम बनाना।

                6              उत्पाद का मार्केट में काॅम्पीटीशन का अध्ययन।

                7              उत्तम क्वालिटी उत्पाद के लिए पर्याप्त पूंजी की व्यवस्था।

                8              आपका उत्पाद बेचने वाले दुकानदारों को आपके द्वारा दी जाने वाली बिक्री की सुविधाएँ।

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए उद्योग में बनायी जाने वाली वस्तु का उद्योग लगाना चाहिए।

इन्हीं के आधार पर आपका उद्योग लगाना सपफल हो सकता है।

अपने उद्योग को लगाने का स्थान बहुत ही सोच-समझकर तय करना चाहिए। उद्योग लगाने के स्थान के पास में ही कच्चे-पक्के माल को लाने ले जाने की सुविधा होनी चाहिए।

सरकार द्वारा इस श्रेणी के उद्योगों को दी जाने वाली सुविधाएँ क्या-क्या हैं वे सुविधाएँ कैसे मिल सकती हैं, किन-किन विभागों से सम्पर्क आवश्यक है।

लघु उद्योग को मूल क्षेत्रा के रूप में माना जाता है। अतः लघु उद्योग स्थापित करने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है। केवल सरकारी संस्थाओं से मिलने वाली सुविधाएँ पाने के लिए सबसे पहले उद्योग का पंजीकरण, कराना जरूरी होता है। बहुत सी ऐसी सरकारी संस्थाएं हैं जिनकी स्थापना एवं कार्य तथा उद्देश्य केवल लघु उद्योग के विकास के लिए उद्यमियों को जानकारी देना, सुविधाएँ प्रदान करना आदि हैं। नये उद्यमियों को किस कार्य के लिए कहाँ किस विभाग में सम्पर्क करना पड़ेगा, कौन-कौन से ऐसे संगठन हैं, जो कई प्रकार की सूचनाएँ, सुविधाएँ और टैक्नीकल जानकारी देने के लिए कार्यरत हैं।

नये उद्यमी को उपरोक्त सभी व्यवस्थाएँ स्वयं करनी पड़ती हैं। जिनके लिए कापफी परिश्रम और समय भी लगता है। अपनी सूझ-बूझ, प्रयास, आर्थिक शक्ति सामथ्र्य और ट्रेनिंग शिक्षा की योग्यता पर ही आपके द्वारा शुरू किया जाने वाला उद्योग सपफल हो सकता है।

केन्द्र तथा राज्य सरकारों की ओर से लघु-उद्योग विकास हेतु विशेष सुविधाएँ दी जा रही हैं, जिनसे नया उद्योग शुरू करने वालों को सरकारी औपचारिकताएँ पूरी करने में मदद मिलती है। इसके लिए सबसे पहले अपने जिले/क्षेत्रा से संबंधित डायरेक्टर ऑफ़ इंडस्ट्रीज या उसके अधीनस्थ अधिकारी से या जिला उद्योग अधिकारी से मिलकर जानकारी लें। उनके विभाग के नियमानुसार अपनी स्कीम लिखित प्रोजेक्ट रिपोर्ट की तीन-तीन प्रतियां दें। यहाँ से कोई आपत्ति नहीं का प्रमाण पत्रा मिलेगा। इसके बाद आप अपने उद्योग के रजिस्ट्रेशन संबंधी कार्यवाही करें और फर्म या कारखाने को रजिस्टर्ड करायें।

इसके बाद नगरपालिका से संबंधित कार्यों की अनुमति लेनी चाहिए। इसके लिए डायरेक्टर ऑफ़ इंडस्ट्रीज की सिफ़ारिश के आधार पर बिजली तथा पानी से संबंधित विभाग अपनी स्वीकृति देते हैं। उद्योग यदि ग्रामीण क्षेत्रों में अर्थात् छोटे गांवों में लगाना हो तो उस पर विशेष सरकारी आवेदन अनुमति या शहरों जैसी अन्य बंदिशें नहीं है।

यदि आपको उद्योग में लगने वाला कच्चा माल और मशीन विदेशों से मंगाने-आयात करने की आवश्यकता हो तो इसके लिए डायरेक्टर ऑफ़ इंडस्ट्रीज अर्थात् इम्पोर्ट लाइसैन्स उद्योग की श्रेणी के अन्तर्गत बनाये जाते हैं जिनकी इम्पोर्ट कन्ट्रोल पॉलिसी एक निश्चित अवधि के लिए ही होती है।

इम्पोर्ट मशीनों और माल को आयात करने में कठिनाइयों का हल निकालने के लिए कुछ भारतीय उद्योगपतियों ने तथा नये उद्यमियों ने सीधे विदेशी-सहयोग से भी नये उद्योग लगाने का प्रयास किया है। इसके लिए भारत सरकार की अनुमति अति आवश्यक है। उद्योग की इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट पॉलिसी के या विदेशी नीति के अन्तर्गत लाइसैन्स की स्वीकृति आदि मिल सकती है, बशर्ते कि वह उद्योग राष्ट्र हित की दृष्टि से ठीक माना जाता हो।

लघु उद्योगों  ने बीते 50  साल में प्रगति के अनेक सोपान तय किये हैं । हमारे देश के सामाजिक एवं आर्थिक  विकास में इन उद्योगों  का योगदान अहम साबित हुआ है । इन्होने कम पूँजी से रोज़गार उपलब्ध कराये हैं । ग्रामीण इलाको में औद्योगीकरण का प्रकाश फैलाया है तथा क्षेत्रीय असंतुलन में कमी को दूर करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है । लघु उद्योग में हुए विकास ने आधुनिक तकनीक अपनाने तथा लाभकारी रोजगार में श्रम शक्ति का अवशोषण करने के लिए उद्यमशीलता की प्रतिभा का उपयोग करने को प्राथमिकता प्रदान की है जिससे उत्पादकता और आय के स्तर को बढ़ाया जा सके।

लघु उद्योग, स्वरोजगार व प्रबन्ध क्षेत्रों में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं। लघु, कुटीर व घरेलू उद्योग परियोजनाएं नए उद्यमी व संभावित उद्यमियों को उद्योग. व्यवसाय की स्थापना व संवर्द्धन की दिशा में प्रेरित करती हैं जिससे वे देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान बढ़ा सकें।

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